नवदंपतिओं का स्वागत
(चौपाई)
भूप भवन तेहि अवसर सोहा । रचना देखि मदन मनु मोहा ॥
मंगल सगुन मनोहरताई । रिधि सिधि सुख संपदा सुहाई ॥१॥
जनु उछाह सब सहज सुहाए । तनु धरि धरि दसरथ दसरथ गृहँ छाए ॥
देखन हेतु राम बैदेही । कहहु लालसा होहि न केही ॥२॥
जुथ जूथ मिलि चलीं सुआसिनि । निज छबि निदरहिं मदन बिलासनि ॥
सकल सुमंगल सजें आरती । गावहिं जनु बहु बेष भारती ॥३॥
भूपति भवन कोलाहलु होई । जाइ न बरनि समउ सुखु सोई ॥
कौसल्यादि राम महतारीं । प्रेम बिबस तन दसा बिसारीं ॥४॥
(दोहा)
दिए दान बिप्रन्ह बिपुल पूजि गनेस पुरारी ।
प्रमुदित परम दरिद्र जनु पाइ पदारथ चारि ॥ ३४५ ॥