Monday, 4 November, 2024

Bal Kand Doha 49

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Bal Kand  							Doha 49

Bal Kand Doha 49

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शंकर-पार्वती श्रीराम को विरही अवस्था में देखते है
 
(चौपाई)
रावन मरन मनुज कर जाचा । प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा ॥
जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा । करत बिचारु न बनत बनावा ॥१॥
 
एहि बिधि भए सोचबस ईसा । तेहि समय जाइ दससीसा ॥
लीन्ह नीच मारीचहि संगा । भयउ तुरत सोइ कपट कुरंगा ॥२॥
 
करि छलु मूढ़ हरी बैदेही । प्रभु प्रभाउ तस बिदित न तेही ॥
मृग बधि बन्धु सहित हरि आए । आश्रमु देखि नयन जल छाए ॥३॥
 
बिरह बिकल नर इव रघुराई । खोजत बिपिन फिरत दोउ भाई ॥
कबहूँ जोग बियोग न जाकें । देखा प्रगट बिरह दुख ताकें ॥४॥
 
(दोहा)
अति विचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान ।
जे मतिमंद बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन ॥ ४९ ॥

 

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