Jayant hurt Sita
By-Gujju27-04-2023
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जयंत सीता को चाँच मारता है
पुर नर भरत प्रीति मैं गाई । मति अनुरूप अनूप सुहाई ॥
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन । करत जे बन सुर नर मुनि भावन ॥१॥
एक बार चुनि कुसुम सुहाए । निज कर भूषन राम बनाए ॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर । बैठे फटिक सिला पर सुंदर ॥२॥
सुरपति सुत धरि बायस बेषा । सठ चाहत रघुपति बल देखा ॥
जिमि पिपीलिका सागर थाहा । महा मंदमति पावन चाहा ॥३॥
सीता चरन चौंच हति भागा । मूढ़ मंदमति कारन कागा ॥
चला रुधिर रघुनायक जाना । सींक धनुष सायक संधाना ॥४॥
(दोहा)
अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह ।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह ॥ १ ॥