राजा ब्राह्मणो को ब्रह्मभोजन कराने के लिए राजी
(चौपाई)
जानि नृपहि आपन आधीना । बोला तापस कपट प्रबीना ॥
सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही । जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही ॥१॥
अवसि काज मैं करिहउँ तोरा । मन तन बचन भगत तैं मोरा ॥
जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ । फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ ॥२॥
जौं नरेस मैं करौं रसोई । तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई ॥
अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई । सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई ॥३॥
पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ । तव बस होइ भूप सुनु सोऊ ॥
जाइ उपाय रचहु नृप एहू । संबत भरि संकलप करेहू ॥४॥
(दोहा)
नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार ।
मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिं करिब जेवनार ॥ १६८ ॥