Nishadha King Guha’s hospitality
By-Gujju01-05-2023
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निषादराज गुह की खातिरदारी
राम लखन सिय रूप निहारी । कहहिं सप्रेम ग्राम नर नारी ॥
ते पितु मातु कहहु सखि कैसे । जिन्ह पठए बन बालक ऐसे ॥१॥
एक कहहिं भल भूपति कीन्हा । लोयन लाहु हमहि बिधि दीन्हा ॥
तब निषादपति उर अनुमाना । तरु सिंसुपा मनोहर जाना ॥२॥
लै रघुनाथहि ठाउँ देखावा । कहेउ राम सब भाँति सुहावा ॥
पुरजन करि जोहारु घर आए । रघुबर संध्या करन सिधाए ॥३॥
गुहँ सँवारि साँथरी डसाई । कुस किसलयमय मृदुल सुहाई ॥
सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी । दोना भरि भरि राखेसि पानी ॥४॥
(दोहा)
सिय सुमंत्र भ्राता सहित कंद मूल फल खाइ ।
सयन कीन्ह रघुबंसमनि पाय पलोटत भाइ ॥ ८९ ॥