बारात अयोध्या के लिए निकली
(चौपाई)
बहुबिधि भूप सुता समुझाई। नारिधरमु कुलरीति सिखाई ॥
दासीं दास दिए बहुतेरे। सुचि सेवक जे प्रिय सिय केरे ॥१॥
सीय चलत ब्याकुल पुरबासी। होहिं सगुन सुभ मंगल रासी ॥
भूसुर सचिव समेत समाजा। संग चले पहुँचावन राजा ॥२॥
समय बिलोकि बाजने बाजे। रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे ॥
दसरथ बिप्र बोलि सब लीन्हे। दान मान परिपूरन कीन्हे ॥३॥
चरन सरोज धूरि धरि सीसा। मुदित महीपति पाइ असीसा ॥
सुमिरि गजाननु कीन्ह पयाना। मंगलमूल सगुन भए नाना ॥४॥
(दोहा)
सुर प्रसून बरषहि हरषि करहिं अपछरा गान।
चले अवधपति अवधपुर मुदित बजाइ निसान ॥ ३३९ ॥