Wednesday, 13 November, 2024

Ram reach Sage Bhardwaj’s ashram

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श्रीराम भरद्वाज मुनि के आश्रम पहूँचे
 
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ । कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ ॥
अस तीरथपति देखि सुहावा । सुख सागर रघुबर सुखु पावा ॥१॥
 
कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई । श्रीमुख तीरथराज बड़ाई ॥
करि प्रनामु देखत बन बागा । कहत महातम अति अनुरागा ॥२॥
 
एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी । सुमिरत सकल सुमंगल देनी ॥
मुदित नहाइ कीन्हि सिव सेवा । पुजि जथाबिधि तीरथ देवा ॥३॥
 
तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए । करत दंडवत मुनि उर लाए ॥
मुनि मन मोद न कछु कहि जाइ । ब्रह्मानंद रासि जनु पाई ॥४॥
 
(दोहा)   
दीन्हि असीस मुनीस उर अति अनंदु अस जानि ।
लोचन गोचर सुकृत फल मनहुँ किए बिधि आनि ॥ १०६ ॥

 

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