बारात का वर्णन
(चौपाई)
कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं । कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं ॥
चले मत्तगज घंट बिराजी । मनहुँ सुभग सावन घन राजी ॥१॥
बाहन अपर अनेक बिधाना । सिबिका सुभग सुखासन जाना ॥
तिन्ह चढ़ि चले बिप्रबर बृन्दा । जनु तनु धरें सकल श्रुति छंदा ॥२॥
मागध सूत बंदि गुनगायक । चले जान चढ़ि जो जेहि लायक ॥
बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती । चले बस्तु भरि अगनित भाँती ॥३॥
कोटिन्ह काँवरि चले कहारा । बिबिध बस्तु को बरनै पारा ॥
चले सकल सेवक समुदाई । निज निज साजु समाजु बनाई ॥४॥
(दोहा)
सब कें उर निर्भर हरषु पूरित पुलक सरीर ।
कबहिं देखिबे नयन भरि रामु लखनू दोउ बीर ॥ ३०० ॥