विश्वामित्र महाराजा जनक को राम-लक्ष्मण का परिचय देते है
(चौपाई)
कहहु नाथ सुंदर दोउ बालक । मुनिकुल तिलक कि नृपकुल पालक ॥
ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा । उभय बेष धरि की सोइ आवा ॥१॥
सहज बिरागरुप मनु मोरा । थकित होत जिमि चंद चकोरा ॥
ताते प्रभु पूछउँ सतिभाऊ । कहहु नाथ जनि करहु दुराऊ ॥२॥
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा । बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा ॥
कह मुनि बिहसि कहेहु नृप नीका । बचन तुम्हार न होइ अलीका ॥३॥
ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी । मन मुसुकाहिं रामु सुनि बानी ॥
रघुकुल मनि दसरथ के जाए । मम हित लागि नरेस पठाए ॥४॥
(दोहा)
रामु लखनु दोउ बंधुबर रूप सील बल धाम ।
मख राखेउ सबु साखि जगु जिते असुर संग्राम ॥ २१६ ॥