मुझे क्यूँ मारा ? – बालि ने श्रीराम से पूछा
परा बिकल महि सर के लागें । पुनि उठि बैठ देखि प्रभु आगें ॥
स्याम गात सिर जटा बनाएँ । अरुन नयन सर चाप चढ़ाएँ ॥१॥
पुनि पुनि चितइ चरन चित दीन्हा । सुफल जन्म माना प्रभु चीन्हा ॥
हृदयँ प्रीति मुख बचन कठोरा । बोला चितइ राम की ओरा ॥२॥
धर्म हेतु अवतरेहु गोसाई । मारेहु मोहि ब्याध की नाई ॥
मैं बैरी सुग्रीव पिआरा । अवगुन कबन नाथ मोहि मारा ॥३॥
अनुज बधू भगिनी सुत नारी । सुनु सठ कन्या सम ए चारी ॥
इन्हहि कुद्दष्टि बिलोकइ जोई । ताहि बधें कछु पाप न होई ॥४॥
मुढ़ तोहि अतिसय अभिमाना । नारि सिखावन करसि न काना ॥
मम भुज बल आश्रित तेहि जानी । मारा चहसि अधम अभिमानी ॥५॥
(दोहा)
सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि ।
प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि ॥ ९ ॥