Laxman pacify Guha
By-Gujju01-05-2023
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लक्ष्मण गुह को समझाता है
भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी । कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी ॥
भयउ बिषादु निषादहि भारी । राम सीय महि सयन निहारी ॥१॥
बोले लखन मधुर मृदु बानी । ग्यान बिराग भगति रस सानी ॥
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सबु भ्राता ॥२॥
जोग बियोग भोग भल मंदा । हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा ॥
जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू । संपती बिपति करमु अरु कालू ॥३॥
धरनि धामु धनु पुर परिवारू । सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू ॥
देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं । मोह मूल परमारथु नाहीं ॥४॥
(दोहा)
सपनें होइ भिखारि नृप रंकु नाकपति होइ ।
जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ ॥ ९२ ॥