Saturday, 27 July, 2024

Laxman pacify Guha

100 Views
Share :
Laxman pacify Guha

Laxman pacify Guha

100 Views

लक्ष्मण गुह को समझाता है
 
भइ दिनकर कुल बिटप कुठारी । कुमति कीन्ह सब बिस्व दुखारी ॥
भयउ बिषादु निषादहि भारी । राम सीय महि सयन निहारी ॥१॥
 
बोले लखन मधुर मृदु बानी । ग्यान बिराग भगति रस सानी ॥
काहु न कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सबु भ्राता ॥२॥
 
जोग बियोग भोग भल मंदा । हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा ॥
जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू । संपती बिपति करमु अरु कालू ॥३॥
 
धरनि धामु धनु पुर परिवारू । सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू ॥
देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं । मोह मूल परमारथु नाहीं ॥४॥
 
(दोहा)  
सपनें होइ भिखारि नृप रंकु नाकपति होइ ।
जागें लाभु न हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ ॥ ९२ ॥

 

Share :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *